लेखक: देवऋषि (Devrishi) — दार्शनिक, योगी, लेखक एवं ‘नाद योग रिसर्च काउंसिल’ के संस्थापक
“राम” कोई केवल ऐतिहासिक चरित्र नहीं, अपितु सनातन चेतना के एक सजीव प्रतिरूप हैं। वे न तो केवल किसी राज्य के राजा थे और न ही मात्र युद्ध के वीर – वे एक महायोगी थे, जिन्होंने सांसारिक कर्तव्यों के मध्य योग के परम रहस्य को जीया।
🕉️ योग क्या है?
योग का अर्थ है – एकत्व, संयोजन, मिलन। यह केवल शरीर की क्रियाओं या श्वासों का नियंत्रण नहीं, बल्कि आत्मा का परमात्मा से मिलन है। राम का सम्पूर्ण जीवन इस योगिक एकत्व का उदाहरण है।
🌿 राम: कर्मयोगी और ध्यानयोगी
श्रीराम के जीवन की प्रत्येक घटना कर्मयोग का जीता-जागता उदाहरण है। वे जानते थे कि धर्म का पालन ही सच्चा योग है — चाहे वह वनवास की स्वीकार्यता हो, शबरी के जूठे बेर हों या रावण पर विजय प्राप्त करने के पश्चात विनम्रता बनाए रखना।
उनकी निःशब्द सहनशीलता, वाणी में मधुरता, और भीतर स्थिरता — यह सब एक ध्यानस्थ योगी की ही पहचान है।
🕊️ राम और आत्मसंयम (Self-Mastery)
राम एक संयम की मूर्ति थे। जब उन्हें सिंहासन त्यागना पड़ा, तब उन्होंने मन में कोई क्लेश नहीं रखा। जब उन्होंने सीता का परित्याग किया, तब उन्होंने एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक राजा के रूप में सामाजिक धर्म को प्राथमिकता दी। यह सब दर्शाता है कि उन्होंने अपनी इच्छाओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी।
योग का पहला नियम है – आत्मसंयम, और राम उसमें पूर्णत: सिद्ध थे।
🔱 राम और नाद योग
राम नाम स्वयं एक बीज-मंत्र (Seed Mantra) है। “रा” सूर्य का बीज है – प्रकाश, और “म” चंद्र का बीज – शांति। राम का नाम जपना ही नाद योग का साधन है।
तुलसीदास जी कहते हैं:
“राम नाम बिनु गिरा न सोहै। ज्यों देह बिनु प्रान।”
अर्थात – वाणी बिना राम नाम के शोभा नहीं देती, जैसे शरीर बिना प्राण के।
नाद योग में हम ध्वनि के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ते हैं — और “राम” वह सर्वोच्च ध्वनि है।
🪔 निष्कर्ष
राम योग हैं, राम धर्म हैं, राम शांति हैं। वे हमें सिखाते हैं कि योग केवल ध्यानस्थ होकर बैठ जाना नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर धर्म, विवेक और संयम से जीना ही सच्चा योग है।
राम एक मौन साधक की तरह संसार में सक्रिय थे, और एक महायोगी की तरह आत्मा में स्थिर।
देवऋषि (Devrishi)
दार्शनिक | मिस्टिक | लेखक | संस्थापक — NYRC
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