Site icon DEVRISHI

अंग्रेज़ी की चकाचौंध में धुँधली होती मातृभाषा: सांस्कृतिक पहचान का संकट और संतुलन की तलाश

भारत की बहुभाषी पहचान में अंग्रेज़ी का दबदबा नया नहीं है, पर स्मार्टफ़ोन के युग में यह दबदबा रोज़गार, सोशल कैपिटल और “अच्छी शिक्षा” का पर्याय बन गया है। नतीजा यह कि महानगरों में बच्चों की पहली किताबें, स्कूल की मीटिंगें, कोचिंग, यहाँ तक कि घरेलू बातचीत भी अंग्रेज़ी की तरफ़ तेजी से झुक रही है। इस दौड़ में मातृभाषाएँ हिंदी सहित धीरे-धीरे हाशिए पर जा रही हैं। सवाल केवल भावनात्मक नहीं, संज्ञानात्मक भी है: बच्चा जिस भाषा में सोचता और महसूस करता है, उसी में सीखने की बुनियाद सबसे मजबूत बनती है।

क्यों ज़रूरी है मातृभाषा केवल “भावना” नहीं, “कार्यदक्षता” भी

आँकड़े क्या कहते हैं (Data That Raises Alarm)

नतीजा साफ़ है: अंग्रेज़ी कौशल लाभकारी है, पर शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा की मज़बूत बुनियाद के बिना सीखने की गुणवत्ता, बराबरी और आत्मविश्वास तीनों पर चोट पड़ती है।

नीति परिप्रेक्ष्य: भारत का रास्ता

स्कूल-कक्षा से आगे: कॉलेज, कॉरपोरेट और मीडिया की भूमिका

परिवार और समुदाय: सबसे बड़ा “लैंग्वेज लैब” घर ही है

क्या है “संतुलन” एक व्यावहारिक रोडमैप

  1. प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा को प्राथमिकता: कक्षा 1–3 में अधिकतम विषय मातृभाषा/स्थानीय भाषा में, साथ ही अंग्रेज़ी सुनना–बोलना एक कौशल के रूप में।
  2. क्रमबद्ध द्विभाषिकता: कक्षा 4–8 में विषयानुसार द्विभाषिक सामग्री; गणित/विज्ञान जैसी अवधारणाएँ पहले मातृभाषा में पक्की, फिर अंग्रेज़ी शब्दावली जोड़ी जाए।
  3. सेकेंडरी स्तर पर स्प्रिंगबोर्ड: 9–12 में “अकादमिक अंग्रेज़ी” और “कैरियर अंग्रेज़ी” के अलग मॉड्यूल—रिपोर्ट-राइटिंग, प्रेज़ेंटेशन, ईमेल-शिष्टाचार, डेटा-वाक्य-रचना।
  4. उच्च शिक्षा/रोज़गार में पुल: विश्वविद्यालयों में द्विभाषिक लेक्चर/सबटाइटल, क्षेत्रीय भाषा में रेफरेंस रीडिंग + अंग्रेज़ी में “फ़ाइनल आर्टिफ़ैक्ट” (पेपर/प्रेज़ेंटेशन) का मॉडल।
  5. डिजिटल टेक का सहारा: BHASHINI/अनुवाद टूल्स को कक्षा/लैब में अपनाएँ; स्थानीय भाषा-ऐप्स, स्पीच-टू-टेक्स्ट, डिक्शनरी/ग्लॉसरी का रोज़मर्रा में प्रयोग बढ़ाएँ।

निष्कर्ष: जड़ों के साथ उड़ान

आज के भारत में अंग्रेज़ी आर्थिक अवसर का दरवाज़ा है यह मानना होगा। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि मातृभाषा हमारे सोचने-समझने, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक स्मृति की बुनियाद है। टकराव का समाधान द्विभाषिक संतुलन है: शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा की ठोस नींव, और उसके ऊपर सुविचारित ढंग से अंग्रेज़ी दक्षता की इमारत। यही रास्ता पहचान की रक्षा करते हुए अवसरों का विस्तार करता है यही भारत की बहुभाषिक आत्मा के अनुरूप है।

Exit mobile version