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Sawan Somwar का वैज्ञानिक राज: चंद्रमा, शिव और मानसिक शांति का योग

श्रावण मास को सनातन संस्कृति में अत्यंत पवित्र माना गया है। यह माह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, जिनकी उपासना में भक्तजन विशेष पूजा, उपवास और ध्यान करते हैं। सावन के सोमवार का महत्व और भी अनूठा है, क्योंकि यह शिव के प्रिय दिन (सोमवार) और प्रिय मास (सावन) का शुभ संयोग है। पौराणिक कथाएँ बताती हैं कि माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए श्रावण के प्रत्येक सोमवार को कठोर व्रत किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यह कथा हमें संकल्प, एकाग्रता और लक्ष्य प्राप्ति के लिए अटूट विश्वास की शक्ति सिखाती है।

इससे भी गहरा संबंध सोमवार, चंद्रमा और हमारे मन का है। वैदिक दृष्टिकोण से, चंद्रमा मन का कारक देवता है – “चंद्रमा मनसो जातः” अर्थात चंद्रमा ब्रह्मांड के मन से उत्पन्न हुआ है। ज्योतिष शास्त्र में भी चंद्रमा मानव मस्तिष्क और भावनाओं का अधिपति ग्रह है। सप्ताह का सोमवार चंद्रदेव को समर्पित है। भगवान शिव को सोमेश्वर कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सोम (चंद्र) को अपने शीश पर धारण किया है। शिव के मस्तक पर सुशोभित अर्धचंद्र इस गहन सत्य का प्रतीक है कि मन की चंचलता और अस्थिरता शिव जैसे महायोगी की शरण में स्थिर हो सकती है, जो भारतीय ध्वनि दर्शन का मूल भी है। शिव-वंदना और मंत्रों के नाद द्वारा मानव मन चंद्रमा के प्रभावों से संतुलित होता है और नकारात्मक विकार दूर होते हैं।

मानसिक कल्याण और ध्वनि का प्रभाव: श्रावण सोमवार की पूजा, उपवास और ध्यान का मनोवैज्ञानिक प्रभाव उल्लेखनीय है। भगवान शिव को योगेश्वर कहा गया है – ध्यान और समाधि के अधिष्ठाता। उनकी उपासना में रत होने से साधक के मन से नकारात्मक भाव छन जाते हैं और आत्मबल बढ़ता है। भारतीय ध्वनि दर्शन के अनुसार, मंत्रों का जप, ध्यान और रुद्राभिषेक जैसे क्रियाकलाप ध्वनि और कंपन के माध्यम से ध्यान की गुणवत्ता को तीव्र करते हैं। यह साधक की आंतरिक यात्रा और मानसिक तेजस्विता को बढ़ाता है।

अध्यात्मिक स्तर पर, यह व्रत आत्मसंयम और संकल्प शक्ति को मजबूत करता है। नियमित उपासना से तनाव एवं चिंता में कमी आती है और एकाग्रता में वृद्धि होती है। आधुनिक मनोविज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि ध्यान-प्रार्थना से स्ट्रेस हार्मोन कम होते हैं और डोपामिन-सेरोटोनिन जैसे मूड सुधारने वाले हार्मोन संतुलित होते हैं, जिससे व्यक्ति को शांति और सकारात्मकता का अनुभव होता है। इस प्रकार, सावन के सोमवार आध्यात्मिक जागरण के साथ-साथ मानसिक स्वस्थता का भी एक अनुपम अवसर प्रदान करते हैं। यह सिद्ध करता है कि हमारी प्राचीन परंपराएँ समकालीन मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों का समाधान देने में कितनी सक्षम हैं।

प्राकृतिक विज्ञान और प्राचीन विवेक: श्रावण सोमवार की परंपराओं में गहरा वैज्ञानिक तर्क भी निहित है। यह मास मॉनसून के मध्य आता है, जब भारी वर्षा, नमी और बदलता पर्यावरण शरीर पर विशिष्ट प्रभाव डालते हैं। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों बताते हैं कि वर्षा ऋतु में पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है। सूरज की कमी और आर्द्रता की अधिकता से जठराग्नि मंद होती है, जिससे शरीर भारी भोजन को अच्छी तरह पचा नहीं पाता। साथ ही, इसी मौसम में जलजनित बीमारियाँ और संक्रमण तेजी से फैलते हैं।

हमारे ऋषि-मुनियों ने इन प्राकृतिक परिस्थितियों को भलीभाँति पहचान कर कुछ आहार-विहार नियम बनाए। श्रावण में उपवास इन्हीं में से एक है। व्रत रखने या हल्का सात्विक आहार लेने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर खुद को डिटॉक्सीफाई कर पाता है। यह शरीर को अनावश्यक प्रदूषकों से बचाने में भी मदद करता है, क्योंकि मॉनसून में सब्जियों और अनाज में कीटाणु लगने का खतरा अधिक होता है। विशेष रूप से हरी पत्तेदार सब्जियां सावन में वर्जित कही गई हैं, क्योंकि पहली बारिश में उगी पत्तों में हानिकारक जीवाणु-परजीवी हो सकते हैं। शिव को दूध अर्पित करने की परंपरा भी उस समय के संदर्भ में एक समझदार उपाय था जब वर्षा ऋतु में दूध की शुद्धता पर प्रश्नचिह्न लग सकता था। यह एक वैज्ञानिक सोच थी जिसे धार्मिक आवरण देकर जनमानस में उतारा गया।

बेलपत्र, जिसे भगवान शिव को अत्यंत प्रिय कहा गया है, वैज्ञानिक रूप से भी एक अमूल्य औषधि है। इसमें मौजूद यौगिक बरसाती बीमारियों जैसे दस्त और पेट फूलने से राहत देते हैं। यह दर्शाता है कि श्रावण के धार्मिक कर्मकांडों में पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य का अद्भुत समावेश है – ऋषियों ने प्रकृति के विज्ञान को भक्ति की आस्था में गूंथ दिया था।

आधुनिक अनुसंधान भी उपवास के फायदों को सराहते हैं, जिसमें मेटाबॉलिज्म में सुधार, मस्तिष्क स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, और शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव व सूजन को कम करना शामिल है। यह सिद्ध करता है कि हमारे पूर्वजों का अनुभवजन्य ज्ञान आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरता है।

श्रावण सोमवार केवल श्रद्धा नहीं, वह सनातन विज्ञान है – जो आत्मा, मन और शरीर को एक लय में लाता है।”

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