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अंग्रेज़ी की चकाचौंध में धुँधली होती मातृभाषा: सांस्कृतिक पहचान का संकट और संतुलन की तलाश

भारत की बहुभाषी पहचान में अंग्रेज़ी का दबदबा नया नहीं है, पर स्मार्टफ़ोन के युग में यह दबदबा रोज़गार, सोशल कैपिटल और “अच्छी शिक्षा” का पर्याय बन गया है। नतीजा यह कि महानगरों में बच्चों की पहली किताबें, स्कूल की मीटिंगें, कोचिंग, यहाँ तक कि घरेलू बातचीत भी अंग्रेज़ी की तरफ़ तेजी से झुक रही है। इस दौड़ में मातृभाषाएँ हिंदी सहित धीरे-धीरे हाशिए पर जा रही हैं। सवाल केवल भावनात्मक नहीं, संज्ञानात्मक भी है: बच्चा जिस भाषा में सोचता और महसूस करता है, उसी में सीखने की बुनियाद सबसे मजबूत बनती है।

क्यों ज़रूरी है मातृभाषा केवल “भावना” नहीं, “कार्यदक्षता” भी

  • संज्ञान और सीखना: शुरुआती बरसों में मातृभाषा में पढ़ना-लिखना बच्चे के दिमाग़ की प्रक्रिया, शब्द-संसार और तर्क-क्षमता को मज़बूत करता है।
  • आत्मविश्वास और पहचान: भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, आत्म-सम्मान का आधार भी है। अपनी भाषा में दक्षता का मतलब है अपनी बात बेहतर कहना और दूसरों की बेहतर समझ बनाना।
  • समावेशन: घर, समुदाय और स्कूल तीनों में एक जैसी भाषा का पुल सामाजिक दूरी घटाता है और ड्रॉपआउट/भय कम करता है।

आँकड़े क्या कहते हैं (Data That Raises Alarm)

  • ASER 2023 (14–18 आयु): लगभग 25% युवाओं को अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा-2 स्तर का गद्य धाराप्रवाह पढ़ने में कठिनाई है; लगभग 57.3% सरल अंग्रेज़ी वाक्य पढ़ लेते हैं और उनमें से करीब 73.5% अर्थ भी समझा देते हैं। (ASER 2023)
  • Census 2011 (India): भारत में केवल करीब 10% लोगों ने अंग्रेज़ी बोल पाने की सूचना दी यानी यह मिथक सही नहीं कि “हर कोई अंग्रेज़ी में दक्ष” है। (Census 2011; Mint सार)
  • अंग्रेज़ी का मज़दूरी-लाभ (Wage Premium): शोध बताते हैं कि धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोलने वाले पुरुषों की औसत मज़दूरी लगभग 34% अधिक और “बेसिक अंग्रेज़ी” वालों की लगभग 13% अधिक पाई गई यानी भाषा-कौशल का साफ़ आर्थिक लाभ है। (Journal of Human Resources / IZA)
  • UNESCO (वैश्विक भाषा-प्रवेश): दुनिया के करीब 40% शिक्षार्थियों को ऐसी भाषा में शिक्षा ही नहीं मिलती जिसे वे बोलते और समझते हों यह सीखने और समावेशन की बाधा है, यह नहीं कि “रचनात्मकता 40% घट जाती है।” (UNESCO GEM)

नतीजा साफ़ है: अंग्रेज़ी कौशल लाभकारी है, पर शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा की मज़बूत बुनियाद के बिना सीखने की गुणवत्ता, बराबरी और आत्मविश्वास तीनों पर चोट पड़ती है।

नीति परिप्रेक्ष्य: भारत का रास्ता

  • NEP 2020: राष्ट्रीय शिक्षा नीति शुरुआती कक्षाओं में घर/मातृभाषा में पढ़ाई पर ज़ोर देती है, साथ ही उच्च शिक्षा और रोज़गार के लिए अंग्रेज़ी दक्षता की ज़रूरत को भी स्वीकार करती है यानी नीति-स्तर पर “द्विभाषिक संतुलन” का समर्थन।
  • BHASHINI (डिजिटल भाषा अवसंरचना): अनुवाद, वाणी-पहचान और क्राउडसोर्सिंग (BhashaDaan) जैसे टूल्स के ज़रिए सरकार भारतीय भाषाओं में डिजिटल पहुँच बढ़ा रही है—ताकि नागरिक सार्वजनिक डिजिटल सेवाओं से भाषा की वजह से वंचित न रहें।

स्कूल-कक्षा से आगे: कॉलेज, कॉरपोरेट और मीडिया की भूमिका

  • स्कूल/टीचर प्रशिक्षण: मातृभाषा-आधारित बहुभाषिक शिक्षा (MTB-MLE) को सफल बनाने के लिए टीचर ट्रेनिंग और द्विभाषिक पाठ्य-संसाधन ज़रूरी हैं ताकि हिंदी/क्षेत्रीय भाषा में अवधारणाएँ मजबूत हों और क्रमबद्ध ढंग से अंग्रेज़ी कौशल जोड़ा जाए।
  • कॉलेज और रोज़गार: विश्वविद्यालय स्तर पर “अकादमिक अंग्रेज़ी” (Academic English) और “कार्यस्थली अंग्रेज़ी” (Workplace English) के संरचित मॉड्यूल बनाए जाएँ ताकि भाषा, विषय-विज्ञान और करियर तीनों में पुल बने।
  • कॉरपोरेट संकेत: कंपनियाँ जॉब-डिस्क्रिप्शन में “भाषा-लचीलापन” (जैसे हिंदी/स्थानीय भाषा में कस्टमर इंटरेक्शन) को स्पष्ट लिखें; इंटरव्यू में द्विभाषिक मूल्यांकन को मानक बनाएँ।
  • मीडिया और एड-टेक: मातृभाषाओं में उच्च-गुणवत्ता वाले शैक्षिक कंटेंट और स्पष्ट शब्दावली (ग्लॉसरी) का निर्माण—ताकि विज्ञान/तकनीक जैसे विषयों में भी भाषा बाधा न बने।

परिवार और समुदाय: सबसे बड़ा “लैंग्वेज लैब” घर ही है

  • घर में नियम: रोज़ 20–30 मिनट बच्चे की मातृभाषा में कहानी/समाचार पढ़ना और उस पर चर्चा—यह पढ़ने की प्रवाह (fluency), शब्द-संसार (vocabulary) और तर्क-शक्ति (comprehension) तीनों बढ़ाता है।
  • दोनों भाषाएँ, अलग भूमिकाएँ: घर/समुदाय में मातृभाषा से संकल्पनाएँ (concepts) मजबूत करें; स्कूल/कोचिंग में धीरे-धीरे अंग्रेज़ी का कौशल जोड़ें।
  • सांस्कृतिक पूँजी: लोक-कथाएँ, गीत, कहावतें, मुहावरे ये सब सांस्कृतिक स्मृति हैं। इन्हें पढ़ना/लिखना/रिकॉर्ड करना पहचान को स्थिर करता है।

क्या है “संतुलन” एक व्यावहारिक रोडमैप

  1. प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा को प्राथमिकता: कक्षा 1–3 में अधिकतम विषय मातृभाषा/स्थानीय भाषा में, साथ ही अंग्रेज़ी सुनना–बोलना एक कौशल के रूप में।
  2. क्रमबद्ध द्विभाषिकता: कक्षा 4–8 में विषयानुसार द्विभाषिक सामग्री; गणित/विज्ञान जैसी अवधारणाएँ पहले मातृभाषा में पक्की, फिर अंग्रेज़ी शब्दावली जोड़ी जाए।
  3. सेकेंडरी स्तर पर स्प्रिंगबोर्ड: 9–12 में “अकादमिक अंग्रेज़ी” और “कैरियर अंग्रेज़ी” के अलग मॉड्यूल—रिपोर्ट-राइटिंग, प्रेज़ेंटेशन, ईमेल-शिष्टाचार, डेटा-वाक्य-रचना।
  4. उच्च शिक्षा/रोज़गार में पुल: विश्वविद्यालयों में द्विभाषिक लेक्चर/सबटाइटल, क्षेत्रीय भाषा में रेफरेंस रीडिंग + अंग्रेज़ी में “फ़ाइनल आर्टिफ़ैक्ट” (पेपर/प्रेज़ेंटेशन) का मॉडल।
  5. डिजिटल टेक का सहारा: BHASHINI/अनुवाद टूल्स को कक्षा/लैब में अपनाएँ; स्थानीय भाषा-ऐप्स, स्पीच-टू-टेक्स्ट, डिक्शनरी/ग्लॉसरी का रोज़मर्रा में प्रयोग बढ़ाएँ।

निष्कर्ष: जड़ों के साथ उड़ान

आज के भारत में अंग्रेज़ी आर्थिक अवसर का दरवाज़ा है यह मानना होगा। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि मातृभाषा हमारे सोचने-समझने, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक स्मृति की बुनियाद है। टकराव का समाधान द्विभाषिक संतुलन है: शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा की ठोस नींव, और उसके ऊपर सुविचारित ढंग से अंग्रेज़ी दक्षता की इमारत। यही रास्ता पहचान की रक्षा करते हुए अवसरों का विस्तार करता है यही भारत की बहुभाषिक आत्मा के अनुरूप है।

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Devrishi

Philosopher, Author & Spiritual Researcher

Devrishi is an Indian philosopher, mystic, author and Spiritual Researcher. He is the founder of the Nada Yoga Research Council and a pioneering in the Global Nada Yoga Movement, dedicated to reviving and promoting the ancient practice of sound and mantra meditation. Devrishi is known for his contributions to Sanatan Sanskriti and Vedic culture, integrating traditional wisdom with modern scientific research.

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