प्राचीन भारतीय ध्वनि ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के संगम पर खड़े होकर, देवऋषि आज एक ऐसे दार्शनिक, साधक और आध्यात्मिक वैज्ञानिक के रूप में उभरे हैं, जो नाद योग के माध्यम से वैदिक ध्वनि विज्ञान को पुनः जागृत कर रहे हैं।
ऋषिकेश पांडेय के रूप में जन्मे देवऋषि की साधना से दर्शन तक की यात्रा ने ध्वनि को आध्यात्मिक विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है। नाद योग अनुसंधान परिषद (Nada Yoga Research Council) की स्थापना कर उन्होंने एक वैश्विक आंदोलन की नींव रखी है, जिसका उद्देश्य है – नाद के माध्यम से आत्मबोध, उपचार और चेतना का विस्तार।

ध्वनि में छिपी आत्मिक क्रांति
“देवऋषि” नाम उन्हें उनकी माँ ने दिया, जो उनकी सनातन संस्कृति और दिव्य चेतना से गहरी निष्ठा को दर्शाता है। महाकुंभ के आध्यात्मिक अनुभवों ने उनकी साधना को दिशा दी और वे पूर्णतः नाद, वैदिक विज्ञान और आत्मिक कल्याण के समर्पित साधक बन गए।
नाद योग अनुसंधान परिषद: परंपरा और विज्ञान का संगम
2025 में स्थापित Nada Yoga Research Council एक अनोखी संस्था है जो वैदिक मंत्रों, ध्वनि-चिकित्सा और चेतना पर उनके वैज्ञानिक प्रभावों का अध्ययन कर रही है। यह परिषद न्यूरोसाइंस, क्वांटम फिजिक्स और भारतीय नादशास्त्र के मध्य सेतु बनाते हुए नाद योग को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठित कर रही है।
साहित्यिक योगदान: इतिहास, संगीत और चेतना का संगम
देवऋषि द्वारा रचित प्रमुख कृतियाँ:
- रामराजा – भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक की ऐतिहासिक-आध्यात्मिक कथा।
- विक्रमादित्य श्रृंखला – सम्राट विक्रमादित्य के जीवन और दर्शन पर आधारित ऐतिहासिक काव्यगाथा।
- द कृष्णा इफेक्ट – भगवान श्रीकृष्ण के ब्रह्मांडीय प्रभाव का दार्शनिक विश्लेषण।
- नाद कॉस्मोलॉजी – नाद के ब्रह्मांडीय और वैज्ञानिक स्वरूप का शोधपरक प्रस्तुतीकरण।
वैश्विक मंच पर भारतीय नाद का पुनरुत्थान
देवऋषि का लक्ष्य है कि नाद योग को एक गंभीर, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धति के रूप में वैश्विक पहचान दिलाई जाए। उनका जीवनकार्य यह दर्शाता है कि ध्वनि केवल श्रव्य नहीं, बल्कि आत्मजागरण की एक ऊर्जा है।
✨ देवऋषि केवल एक दार्शनिक नहीं — वे एक ऐसे रहस्यवादी संगीतज्ञ हैं, जिनकी ध्वनि एक मौन क्रांति को जन्म दे रही है।